अंधियारे को प्रकाश की झन्कार दो मैया,
ज्ञान की धारा को निश्चित आकार दो मैया|
ऋतु बसंत सी पुलकित हो जीवन की क्यारी-क्यारी,
गगन सा 'मानस' सज उठे, विनती स्वीकार दो मैया||
नेकी, सच्चाई , ईमान बिक गए,
शराफत के सारे सामान बिक गए|
न मान न मर्यादा न धर्म न देश,
लगता है अब तो इन्सान बिक गए||
आसमान में हैं बैठे दीवाने कितने,
एक चाँद के पीछे हैं मस्ताने कितने|
आवारा फिरते तारों की अज़ब कहानी है,
आँख मार बन रहे हैं अनजाने कितने||