Monday, October 4, 2010

"लात के चमत्कार"

जिसको मैंने मारी लात,
खुलवा ली उसने फैक्ट्रीयाँ सात,
और जिसको मैंने नहीं मारी लात,
ज़िंदगी भर बस गिनता ही रह गया,
एक.दो.तीन.चार.पांच.छः.सात|

2 comments:

  1. Really very nice poem....

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  2. भावना वर्माOctober 6, 2010 at 2:20 AM

    बहुत ही सुन्दर रचना..कम शब्दों में बहुत में काफी बढियां व्यंग है...
    वेबसाइट की सभी रचनायें बहुत पसंद आयें..
    इतनी कम उम्र में इतना सब कुछ...शुभकामनाएं..

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