जिसको मैंने मारी लात,खुलवा ली उसने फैक्ट्रीयाँ सात,और जिसको मैंने नहीं मारी लात,ज़िंदगी भर बस गिनता ही रह गया,एक.दो.तीन.चार.पांच.छः.सात|
Really very nice poem....
बहुत ही सुन्दर रचना..कम शब्दों में बहुत में काफी बढियां व्यंग है...वेबसाइट की सभी रचनायें बहुत पसंद आयें..इतनी कम उम्र में इतना सब कुछ...शुभकामनाएं..
Really very nice poem....
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर रचना..कम शब्दों में बहुत में काफी बढियां व्यंग है...
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इतनी कम उम्र में इतना सब कुछ...शुभकामनाएं..